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Wednesday, June 29, 2022

Darood Sharif Hindi Mein

 

Darood Sharif Hindi Mein 

दुरुद शरीफ के लिए अल्लाह तआला का इर्शाद हे की

इन्नल लाहा मलाय कतऊ युसैलुना अलन्नबी या अय्यो हल लजीना आ मनु सल्लू अलैहि व सल्लिमों  तस्लीमा

तर्जुमा- बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते दुरुद भेजते है उस गैब 

बताने वाले [नबी] पर ! ए ईमान वालो उन पर दुरुद और खूब सलाम भेजो


 

01. दुरूदे इब्राहीमी

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना मुह़म्मदिवॅं व अ़ला आलि सय्येदिना मुहम्मदिन कमा स़ल्लेता्  अ़ला सय्यिदिना इब्राहिमा् व अ़ला आलि सय्यिदिना इब्राहिमा् इन्नका् हमीदुम मजीद

अल्लाहुम्मा् बारिक अ़ला सय्येदिना मुहम्मदिवॅं व अ़ला सय्यिदिना मुह़म्मदिन कमा बारक-ता् अ़ला सय्यिदिना इब्राहिमा्  व अ़ला आलि सय्यिदिना इब्राहिमा् इन्नका् हमीदुम मजीद

दुरूदे इब्राहीमी सभी दुरूदो से अफजल दुरुद है ! दुरूदे इब्राहीमी को नमाज़ में भी पढ़ा जाता है  इसलिए ये दुरुद पाक हम सबको याद होना चाहिए ! 

Darood-E-Ibrahim 

दुरूद-ए-इब्राहिम आप इस तरह से भी पढ़ सकते हो 

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व अला आलि मुहम्मदिन कमा सललेता अला इब्राहिम व अला आलि इब्राहिम इन्नक हमीदुम मजीद 

अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिव व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारकता अला इब्राहिम व अला आलि इब्राहिम इन्नक हमीदुम मजीद 

02. दुरूदे शफाअत

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुह़म्मदिवॅं व् अ न ज़िल हुल मक़ अ़दल मुक़र-रबा् इन दका् यौमल क़ियामति सल्ललाहु अ़लेहि व् सल्लम

हजरते रुवैफ़अ़ बिन साबित अंसारी फरमाते हे ! की रसूलल्लाह सल्ललाहु अ़लैहि व् सल्लम ने इरशाद फ़रमाया ! जिस शख़्स  ने ये कहा – उस के लिए मेरी शफ़ाअ़त वाजिब हो गयी !

 

03. हुजूर सल्लाहो अ़लैहि व सल्लम की जियारत 

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला रूह़ि मुहम्मदिन फ़िल अर्वाह़ि व स़ल्लि अ़ला ज स दि मुहम्मदिन फ़िल अज सादि व स़ल्लि अ़ला क़ब्रि मुहम्मदिनफ़िल कुबूरि 

जो शख्स ये ट्टरूद शरीफ़ पढेगा उसको ख्वाब में हुजुरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जियारत होगी  

you also read islamic dua 

04. दुरूदे गौसिया 

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुहम्मदिम मअ्दि-निल जूदि वल क र मि व आलिही व बारिक व सल्लिम 

हदीस शरीफ़ : हुजूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लिम फ़रमाते हैं ! क़ियामत क़े दिन मुझ से सब में ज्यादा क़रीब वाे हाेगा ! जिस ने सब से ज्यादा मुझ पर दुरूद भेजा है

 https://mimworld.in/2020/04/darood-sharif-hindi-mein/

 

5. रोज़ी में बरकत 

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदिन अ़ब्दिका व रसूलिका व स़ल्लि अ़लल मुअ्मिनीना् व  मुअ्मिनाति वल मुस्लिमीना् वल मुस्लिमाति 

जिस शख्स की ये ख्वाहिश हाे कि उसका माल बढ जाए ! वो इस दुरूद शरीफ़ को पढा करै 

 

6.मस्जिद में आने और जाने पर दुरूद शरीफ 

बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदिन 

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मस्जिद यें जाते या मस्जिद से निकलते तो ये दुरूद शरीफ ( darood sharif ) पढा करते थे 

 

07. मुकम्मल दुरूद शरीफ

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदिव व अ़ला आलि मुहम्मदिन 

हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा से एक मर्तबा फ़रमाया तुम ना-मुकम्मल दुरूद शरीफ़ ( darood sharif ) न पढा करो ! फिर सहाबए किराम के दर्याफ्त करने पर आप ने ये दुरूद शरीफ़ ( darood sharif ) तअलीम फ़रमाया

 

08. दोज़ख़ से नजात

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदि निन नबीय्यिल उम्मिय्यि व अ़ला आलिही वसल्लिम 

हजरत खल्लाद रहमतुल्लाह अलैह जुम्मा के दिन ये दुरूद शरीफ़ एक हजार मर्तबा पढा करते थे ! उनके इन्तिकाल के बाद उनके तकिया के नीचे से एक कागज मिला जिस पर लिखा हुआ था ! कि ये ख़ल्लाद दिन कसीर के लिए दोजख़ से आजादी का परवाना है  

 

09.  जन्नत में ठिकाना 

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदि निन नबीय्यिल उम्मिय्यि अ़लैंहिस-सलामु 

जुम्मा के दिन एक हजार मर्तबा ये दुरूद शरीफ़ ( darood sharif ) पढने वाले को मरने से पहले जन्नत यें उसका ठिकाना दिखा दिया जाएगा 

 

10. अस्सी साल की इबादत का सवाब

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदि निन नबीय्यिल उम्मिय्यि व अ़ला आलिही व सल्लिम तस्लीमा 

जुमअ के दिन जहॉ नमाजे अस्र पढी हो उसी जगह उठने से पहले अस्सी मर्तबा ये दुरूद शरीफ़ ( darood sharif ) पढ़ने से अस्सी साल के गुनाह मुआफ होते हैं ! और अस्सी साल की इबादत का सवाब मिलता है

 

11. परेशानियाँ दूर हो

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदि निन नबीय्यिल उम्मिय्यि ताहिरिज़ ज़क्किय्यि सलातन तु-हल्लु बिहिल उ-क़-दु व तु-फ़वकू बि-हल कु-र-बु 

ये दुरूद शरीफ़ ( darood sharif ) बार बार पढने से अल्लाह तआला परेशानी दूर फरमा देता है 

 

12. दुरूदे इस्मे अअज़म

*अल्लाहु रब्बु मुहम्मदिन स़ल्ला अ़लैंहि वसल्लमा * नहनु इबादु मुहम्मदिन स़ल्ला अ़लैहि वसल्लमा *

ये दुरूद शरीफ़ ( darood sharif ) कम को क्या सौ मर्तबा रोजाना अपना मअमूल बना लीजिए ! फिर इसकी बरकात देखिए कि दीन व दुनिया के हर काम मेंकामयाबी आपके क़दम चूमेगी नाकामी की बादे ख़ज़ाँ कभी दूर से भी नहीं गुज़रेगी 

 

13. मग़फ़िरत का जरीया

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदिन कुल्लमा ज़-क-ऱहुज़ ज़ाकिरूना् व कुल्लमा ग़ फला् अ़न ज़िक-रिहिल ग़ाफिलूना् 

इमाम इस्माईल बिन मुजनी ने हजरत हमाम शाफ़ई को ख्वाब में देखा ! और पूछा अल्लाह तआल ने आपके साथ क्या मुआमला फ़रमाया ताे उन्होंने जबाब दिया ! इस दुरूद शरीफ़ ( darood sharif ) की बरकत से अल्लाह तआला ने मुझे बक्श दियाऔर इज्जत-ो  एहतराम से जन्नत में ले जाने का हुक्म दिया  

 

14. ईमान की हिफ़ाज़त 

अल्लाहुम्मा् स़ल्लि अ़ला मुहम्मदिवें व अ़ला आलि मुहम्मदिन सलातन दा-इ-मतम बि-दवा-मिका् 

जाे शख्स पचास मर्तबा दिन में और पचास मर्तबा रात में इस दुरूद शरीफ ( darood sharif ) काे पढेगा ! तो उसका ईमान जाने से महफूज होगा

 

Monday, June 6, 2022

जानिए इस्लाम के बारे मे ।

आमतौर पर यह समझा जाता है कि इस्लाम 1400 वर्ष पुराना धर्म है, और इसके ‘प्रवर्तक’ पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) हैं। लेकिन वास्तव में इस्लाम 1400 वर्षों से काफ़ी पुराना धर्म है; उतना ही पुराना जितना धर्ती पर स्वयं मानवजाति का इतिहास और हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) इसके प्रवर्तक (Founder) नहीं, बल्कि इसके आह्वाहक हैं। आपका काम उसी चिरकालीन (सनातन) धर्म की ओर, जो सत्यधर्म के रूप में आदिकाल से ‘एक’ ही रहा है, लोगों को बुलाने, आमंत्रित करने और स्वीकार करने के आह्वान का था। आपका मिशन, इसी मौलिक मानव धर्म को इसकी पूर्णता के साथ स्थापित कर देना था ताकि मानवता के समक्ष इसका व्यावहारिक रूप साक्षात् रूप में आ जाए।

इस्लाम का इतिहास जानने का अस्ल माध्यम स्वयं इस्लाम का मूल ग्रंथ ‘क़ुरआन’ है। और क़ुरआन, इस्लाम का आरंभ प्रथम  मनुष्य ‘आदम’ से होने का ज़िक्र करता है। इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए क़ुरआन ने ‘मुस्लिम’ शब्द का प्रयोग हज़रत इबराहीम (अलैहि॰) के लिए किया है जो लगभग 4000 वर्ष पूर्व एक महान पैग़म्बर (सन्देष्टा) हुए थे। हज़रत आदम (अलैहि॰) से शुरू होकर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) तक हज़ारों वर्षों पर फैले हुए इस्लामी इतिहास में असंख्य ईशसंदेष्टा ईश्वर के संदेश के साथ, ईश्वर द्वारा विभिन्न युगों और विभिन्न क़ौमों में नियुक्त किए जाते रहे। उनमें से 26 के नाम कु़रआन में आए हैं और बाक़ी के नामों का वर्णन नहीं किया गया है। इस अतिदीर्घ श्रृंखला में हर ईशसंदेष्टा ने जिस सत्यधर्म का आह्वान दिया वह ‘इस्लाम’ ही था; भले ही उसके नाम विभिन्न भाषाओं में विभिन्न रहे हों। बोलियों और भाषाओं के विकास का इतिहास चूंकि क़ुरआन ने बयान नहीं किया है इसलिए ‘इस्लाम’ के नाम विभिन्न युगों में क्या-क्या थे, यह ज्ञात नहीं है।

इस्लामी इतिहास के आदिकालीन होने की वास्तविकता समझने के लिए स्वयं ‘इस्लाम’ को समझ लेना आवश्यक है। इस्लाम क्या है, यह कुछ शैलियों में क़ुरआन के माध्यम से हमारे सामने आता है, जैसे:
1. इस्लाम, अवधारणा के स्तर पर ‘विशुद्ध एकेश्वरवाद’ का नाम है। यहां ‘विशुद्ध’ से अभिप्राय है: ईश्वर के व्यक्तित्व, उसकी सत्ता व प्रभुत्व, उसके अधिकारों (जैसे उपास्य व पूज्य होने के अधिकार आदि) में किसी अन्य का साझी न होना। विश्व का...बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड और अपार सृष्टि का यह महत्वपूर्ण व महानतम सत्य मानवजाति की उत्पत्ति से लेकर उसके हज़ारों वर्षों के इतिहास के दौरान अपरिवर्तनीय, स्थायी और शाश्वत रहा है।

2. इस्लाम शब्द का अर्थ ‘शान्ति व सुरक्षा’ और ‘समर्पण’ है। इस प्रकार इस्लामी परिभाषा में इस्लाम नाम है, ईश्वर के समक्ष, मनुष्यों का पूर्ण आत्मसमर्पण; और इस आत्मसमर्पण के द्वारा व्यक्ति, समाज तथा मानवजाति के द्वारा ‘शान्ति व सुरक्षा’ की उपलब्धि का। यह अवस्था आरंभ काल से तथा मानवता के इतिहास हज़ारों वर्ष लंबे सफ़र तक, हमेशा मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता रही है।
इस्लाम की वास्तविकता, एकेश्वरवाद की हक़ीक़त, इन्सानों से एकेश्वरवाद के तक़ाज़े, मनुष्य और ईश्वर  के बीच अपेक्षित संबंध, इस जीवन के पश्चात (मरणोपरांत) जीवन की वास्तविकता आदि जानना एक शान्तिमय, सफल तथा समस्याओं, विडम्बनाओं व त्रासदियों से रहित जीवन बिताने के लिए हर युग में अनिवार्य रहा है; अतः ईश्वर ने हर युग में अपने सन्देष्टा (ईशदूत, नबी, रसूल, पैग़म्बर) नियुक्त करने (और उनमें से कुछ पर अपना ‘ईशग्रंथ’ अवतरित करने) का प्रावधान किया है। इस प्रक्रम का इतिहास, मानवजाति के पूरे इतिहास पर फैला हुआ है।

4. शब्द ‘धर्म’ (Religion) को, इस्लाम के लिए क़ुरआन ने शब्द ‘दीन’ से अभिव्यक्त किया है। क़ुरआन में कुछ ईशसन्देष्टाओं के हवाले से कहा गया है (42:13) कि ईश्वर ने उन्हें आदेश दिया कि वे ‘दीन’ को स्थापित (क़ायम) करें और इसमें भेद पैदा न करें, इसे (अनेकानेक धर्मों के रूप में) टुकड़े-टुकड़े न करें।
इससे सिद्ध हुआ कि इस्लाम ‘दीन’ हमेशा से ही रहा है। उपरोक्त संदेष्टाओं में हज़रत नूह (Noah) का उल्लेख भी हुआ है और हज़रत नूह (अलैहि॰) मानवजाति के इतिहास के आरंभिक काल के ईशसन्देष्टा हैं। क़ुरआन की उपरोक्त आयत (42:13) से यह तथ्य सामने आता है कि अस्ल ‘दीन’ (इस्लाम) में भेद, अन्तर, विभाजन, फ़र्क़ आदि करना सत्य-विरोधी है-जैसा कि बाद के ज़मानों में ईशसन्देष्टाओं का आह्वान व शिक्षाएं भुलाकर, या उनमें फेरबदल, कमी-बेशी, परिवर्तन-संशोधन करके इन्सानों ने अनेक विचारधाराओं व मान्यताओं के अन्तर्गत ‘बहुत से धर्म’ बना लिए।

मानव प्रकृति प्रथम दिवस से आज तक एक ही रही है। उसकी मूल प्रवृत्तियों में तथा उसकी मौलिक आध्यात्मिक, नैतिक, भौतिक आवश्यकताओं में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है। अतः मानव का मूल धर्म भी मानवजाति के पूरे इतिहास में उसकी प्रकृति व प्रवृत्ति के ठीक अनुकूल ही होना चाहिए। इस्लाम इस कसौटी पर पूरा और खरा उतरता है। इसकी मूल धारणाएं, शिक्षाएं, आदेश, नियम...सबके सब मनुष्य की प्रवृत्ति व प्रकृति के अनुकूल हैं।
अतः यही मानवजाति का आदिकालीन तथा शाश्वत धर्म है।

क़ुरआन ने कहीं भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को ‘इस्लाम धर्म का प्रवर्तक’ नहीं कहा है। क़ुरआन में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का परिचय नबी (ईश्वरीय ज्ञान की ख़बर देने वाला), रसूल (मानवजाति की ओर भेजा गया), रहमतुल्-लिल-आलमीन (सारे संसारों के लिए रहमत व साक्षात् अनुकंपा, दया), हादी (सत्यपथ-प्रदर्शक) आदि शब्दों से कराया है।

स्वयं पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ने इस्लाम धर्म के ‘प्रवर्तक’ होने का न दावा किया, न इस रूप में अपना परिचय कराया। आप (सल्ल॰) के एक कथन के अनुसार ‘इस्लाम के भव्य भवन में एक ईंट की कमी रह गई थी, मेरे (ईशदूतत्व) द्वारा वह कमी पूरी हो गई और इस्लाम अपने अन्तिम रूप में सम्पूर्ण हो गया’ (आपके कथन का भावार्थ।) इससे सिद्ध हुआ कि आप (सल्ल॰) इस्लाम धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। (इसका प्रवर्तक स्वयं अल्लाह है, न कि कोई भी पैग़म्बर, रसूल, नबी आदि)। और आप (सल्ल॰) ने उसी इस्लाम का आह्वान किया जिसका, इतिहास के हर चरण में दूसरे रसूलों ने किया था। इस प्रकार इस्लाम का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना मानवजाति और उसके बीच नियुक्त होने वाले असंख्य रसूलों के सिलसिले (श्रृंखला) का इतिहास।

यह ग़लतफ़हमी फैलने और फैलाने में, कि इस्लाम धर्म की उम्र कुल 1400 वर्ष है दो-ढाई सौ वर्ष पहले लगभग पूरी दुनिया पर छा जाने वाले यूरोपीय (विशेषतः ब्रिटिश) साम्राज्य की बड़ी भूमिका है। ये साम्राज्यी, जिस ईश-सन्देष्टा (पैग़म्बर) को मानते थे ख़ुद उसे ही अपने धर्म का प्रवर्तक बना दिया और उस पैग़म्बर के अस्ल ईश्वरीय धर्म को बिगाड़ कर, एक नया धर्म उसी पैग़म्बर के नाम पर बना दिया। (ऐसा इसलिए किया कि पैग़म्बर के आह्वाहित अस्ल ईश्वरीय धर्म के नियमों, आदेशों, नैतिक शिक्षाओं और हलाल-हराम के क़ानूनों की पकड़ (Grip) से स्वतंत्र हो जाना चाहते थे, अतः वे ऐसे ही हो भी गए।)

 यही दशा इस्लाम की भी हो जाए, इसके लिए उन्होंने इस्लाम को ‘मुहम्मडन-इज़्म (Muhammadanism)’ का और मुस्लिमों को ‘मुहम्मडन्स (Muhammadans)’ का नाम दिया जिससे यह मान्यता बन जाए कि मुहम्मद ‘इस्लाम के प्रवर्तक (Founder)’ थे और इस प्रकार इस्लाम का इतिहास केवल 1400 वर्ष पुराना है। न क़ुरआन में, न हदीसों (पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल॰ के कथनों) में, न इस्लामी इतिहास-साहित्य में, न अन्य इस्लामी साहित्य में...कहीं भी इस्लाम के लिए ‘मुहम्मडन-इज़्म’ शब्द और इस्लाम के अनुयायियों के लिए ‘मुहम्मडन’ शब्द प्रयुक्त हुआ है, लेकिन साम्राज्यिों की सत्ता-शक्ति, शैक्षणिक तंत्र और मिशनरी-तंत्र के विशाल व व्यापक उपकरण द्वारा, उपरोक्त मिथ्या धारणा प्रचलित कर दी गई।

भारत के बाशिन्दों में इस दुष्प्रचार का कुछ प्रभाव भी पड़ा, और वे भी इस्लाम को ‘मुहम्मडन-इज़्म’ मान बैठे। ऐसा मानने में इस तथ्य का भी अपना योगदान रहा है कि यहां पहले से ही सिद्धार्थ गौतम बुद्ध जी, ‘‘बौद्ध धर्म’’ के; और महावीर जैन जी ‘‘जैन धर्म’’ के ‘प्रवर्तक’ के रूप में सर्वपरिचित थे। इन ‘धर्मों’ (वास्तव में ‘मतों’) का इतिहास लगभग पौने तीन हज़ार वर्ष पुराना है। इसी परिदृश्य में भारतवासियों में से कुछ ने पाश्चात्य साम्राज्यिों की बातों (मुहम्मडन-इज़्म, और इस्लाम का इतिहास मात्र 1400 वर्ष की ग़लत अवधारणा) पर विश्वास कर लिया।