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What will be the Namaz Praying Time Table

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Monday, November 2, 2020

साईंस की नज़र मेंतदफीन (दफनाने) के एक दिन बाद यानी ठीक 24 घंटे बाद

साईंस की नज़र में

तदफीन (दफनाने) के एक दिन बाद यानी ठीक 24 घंटे  बाद इंसान  की आंतों में ऐसे कीड़ों का गिरोह सरगर्म अमल हो जाता है जो मुर्दे के पाखाना के रास्ते से निकलना शुरू हो जाता है,
साथ ही ना क़बीले बर्दाश्त बदबू फैलना शुरू करता है,
जो दरअस्ल अपने हम पेशा कीड़ों को दावत देते हैं,

ये ऐलान होता है के बिच्छू और तमाम कीड़े मकोड़े इन्सान के जिस्म की तरफ़ हरकत करना शुरू कर देते हैं और इन्सान का गोश्त खाना शुरू कर देते हैं-

तद्फीन के 3 दिन बाद सब से पहले नाक की हालत तब्दील होना शुरू हो जाती है,

6 दिन बाद नाख़ून गिरना शुरू हो जाते हैं,

9 दिन के बाद बाल गिरना शुरू हो जाते हैं,

इंसान के जिस्म पर कोई बाल नहीं रहता और पेट फूलना शुरू हो जाता है,

17 दिन बाद पेट फट जाता है और दीगर अजज़ा बाहर आना शुरू हो जाते हैं,

60 दिन बाद मुर्दे के जिस्म से सारा गोश्त ख़त्म हो जाता है,
इंसान  के जिस्म पर बोटी का एक भी टुकड़ा बाक़ी नहीं रहता,

90 दिन बाद तमाम हड्डियां एक दुसरे से जुदा हो जाती हैं,

एक साल बाद तमाम हड्डियां बोसीदा (मिट्टी में मिल जाना) हो जाती हैं,

और बिल आख़िर जिस इंसान  को दफनाया गया था उसका वुजूद ख़त्म हो जाता है,

तो मेरे दोस्तों और अज़ीज़ों

ग़ुरूर, तकब्बुर, हिर्स, लालच, घमंड, दुश्मनी, हसद, बुग्ज़, जलन, इज़्ज़त, वक़ार, नाम, ओहदा, बाद्शाही, ये सब कहाँ जाता है??

सब कुछ ख़ाक़ में मिल जाता है,

इंसान की हैसियत ही क्या है??

मिट्टी से बना है, मिट्टी में दफ़न हो कर, मिट्टी हो जाता है,

5 या 6 फिट का इन्सान क़ब्र में जा कर बे नामों निशां हो जाता है,

दूनियाँ में अकड़ कर चलने वाला,
क़ब्र में आते ही उसकी हैसियत सिर्फ़ "मिट्टी" रह जाती है,

लिहाज़ इंसान  को अपनी अब्दी और हमेशा की ज़िंदगी को ख़ूबसूरत पुर सुकून बनाने के लिये हर लम्हा फिक़्र करनी चाहिये,

हर नेक अमल और इबादत में इख्लास पैदा करना चाहिये,
और ख़ात्मा बिलख़ैर की दुआ करनी चाहिये!

अल्लाह तआला मुझे ओर आप सबको अमल की तौफीक़ अता फरमाएं आमीन ۔۔
अब्दुल रव

Friday, October 30, 2020

Kidney Specialist से पूछा ।

एक किडनी स्पेशलिस्ट से एक साहब ने पूछा "आप किडनी को एक इंसान से दूसरे इंसान के जिस्म में ट्रांसप्लांट कर देते हैं, लेकिन अब तो विज्ञान ने बहुत तरक़्क़ी की है, आर्टफिशल इंटेलिजेंस से ये बात ज़्यादा समझ में आ सकती है तो कोई आर्टफिशल किडनी क्यों नहीं बनाई जा सकती? के दूसरे इंसान के किडनी को इस्तेमाल करने की ज़रूरत ही नहीं पेश आ आये ?"
  डॉक्टर साहब ने हंसकर जवाब दिया "बेशक, विज्ञान ने बुहत तरक़्क़ी कर ली है लेकिन आर्टफिशल किडनी बनाना बड़ा मुश्किल काम है। क्यूंकि ख़ुदा ने किडनी में जो छलनी रखी है वो इतनी बारीक है कि अभी कोई ऐसी मशीन नहीं बनी जो इतनी बारीक छलनी बना सके। फिर भी अगर ऐसी मशीन बन जाए तब भी इतनी बारीक छलनी बनाने की तैयारी में ही अरबों खरबों रुपये लग जाएंगे, फिर किडनी के अंदर एक चीज़ ऐसी है जिसको बनाना हमारी क़ुदरत के बाहर है। वो ये कि किडनी के अंदर ख़ुदा ने एक दिमाग़ रखा है जो ये फैसला करता है कि आदमी के जिस्म में कितना पानी रखना चाहिए और कितना बाहर फेंकना चाहिए।
   हर इंसान की किडनी इसके शरीर के मुताबिक़, हालात के मुताबिक़ और इसके बनावट के मुताबिक़ दिमाग़ ये फैसला करता है कि कितना पानी जिस्म के अंदर रखना है और कितना बाहर फेंकना है और इसका ये फैसला 100% दुरुस्त होता। जिसके नतीजे में वो जिस्म के अंदर इतना पानी रोकता है जितने की ज़रूरत होती है। ज़रूरत से ज़्यादा पानी वो पेशाब की शकल में बाहर फेंक देता है। लिहाज़ा हम अरबों रुपये खर्च करके रबर की किडनी बना भी देते हैं तब भी हम इसका दिमाग़ नहीं बना सकते।

ये एक किडनी की क़ीमत है। इसके अलावा जिस्म के जो हिस्से हैं वो भी बेशक़ीमती है, हत्ता के जिस्म के बाल जिसे वो काटकर फेंक देता है उसकी भी क़ीमत है।।।

सुब्हान अल्लाह

Friday, October 16, 2020

Thursday, October 15, 2020

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      नेपाली मा कुरान / Listen Quran in Nepali 




नमाज को (का)तरिका