एक किडनी स्पेशलिस्ट से एक साहब ने पूछा "आप किडनी को एक इंसान से दूसरे इंसान के जिस्म में ट्रांसप्लांट कर देते हैं, लेकिन अब तो विज्ञान ने बहुत तरक़्क़ी की है, आर्टफिशल इंटेलिजेंस से ये बात ज़्यादा समझ में आ सकती है तो कोई आर्टफिशल किडनी क्यों नहीं बनाई जा सकती? के दूसरे इंसान के किडनी को इस्तेमाल करने की ज़रूरत ही नहीं पेश आ आये ?"
डॉक्टर साहब ने हंसकर जवाब दिया "बेशक, विज्ञान ने बुहत तरक़्क़ी कर ली है लेकिन आर्टफिशल किडनी बनाना बड़ा मुश्किल काम है। क्यूंकि ख़ुदा ने किडनी में जो छलनी रखी है वो इतनी बारीक है कि अभी कोई ऐसी मशीन नहीं बनी जो इतनी बारीक छलनी बना सके। फिर भी अगर ऐसी मशीन बन जाए तब भी इतनी बारीक छलनी बनाने की तैयारी में ही अरबों खरबों रुपये लग जाएंगे, फिर किडनी के अंदर एक चीज़ ऐसी है जिसको बनाना हमारी क़ुदरत के बाहर है। वो ये कि किडनी के अंदर ख़ुदा ने एक दिमाग़ रखा है जो ये फैसला करता है कि आदमी के जिस्म में कितना पानी रखना चाहिए और कितना बाहर फेंकना चाहिए।
हर इंसान की किडनी इसके शरीर के मुताबिक़, हालात के मुताबिक़ और इसके बनावट के मुताबिक़ दिमाग़ ये फैसला करता है कि कितना पानी जिस्म के अंदर रखना है और कितना बाहर फेंकना है और इसका ये फैसला 100% दुरुस्त होता। जिसके नतीजे में वो जिस्म के अंदर इतना पानी रोकता है जितने की ज़रूरत होती है। ज़रूरत से ज़्यादा पानी वो पेशाब की शकल में बाहर फेंक देता है। लिहाज़ा हम अरबों रुपये खर्च करके रबर की किडनी बना भी देते हैं तब भी हम इसका दिमाग़ नहीं बना सकते।
ये एक किडनी की क़ीमत है। इसके अलावा जिस्म के जो हिस्से हैं वो भी बेशक़ीमती है, हत्ता के जिस्म के बाल जिसे वो काटकर फेंक देता है उसकी भी क़ीमत है।।।
सुब्हान अल्लाह
I read this article, it is really informative one. Your way of writing and making things clear is very impressive. Thanking you for such an informative article.health economics and outcomes research services
ReplyDeleteThank you so much for your wonderful comment.Love to hear from you.
Delete